१.
अप्सरा सी सज धज कर
सौ सौ मेरी भावनाएँ
आई हैं तेरे चरणों पर
क्या तू इसे स्वीकार करेगा
२.
तू मुझसे दूर है पर लगता है जैसे
मेरे ह्रदय के कहीं आसपास ही है-
तेरा निराकार रूप .
तेरी कृपा करुणा मुझ पर
तू हजारों कोष दूर से बरसाता है
तब मैं तड़प उठता हूँ तेरे पास आने को;
पर तू मुझसे दूर कब हुआ था?
मेरा ये प्रश्न निरुत्तर रहता है
और नत मस्तक हो उठता है
मेरा “मैं”
तेरा “तू”
३.
ये लघु मस्तिष्क विराट प्रकृति को
नियमों में बांधना चाहता है
लेकिन कब बंध सकी है?
मैं भी वैसे ही तुझे
अपनी आखों के आसपास
कहीं बांधे रखना चाहता हूँ-
मैं लघु ,तू विशाल है
क्या तू बंध सकेगा?
४.
मैं तुझे चाँद के डोले में बादलों में बिठलाकर,
अपने साथ साथ लिए घूमूँगा –
मेरे अंधकार में तेरी रौशनी के लिए
अपना जीवन पथ खोजने
मेरी तर्कशील बुद्धि जानता हूँ
एक दिन मुझे धोखा देगी
तब तेरी चरणधूलि मेरे मस्तिष्क पर लेपकर
क्या तू मेरा उपचार करेगा?
कृ.प.उ.
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