“ऋआ"
इक कोमल सी तितली मेरी बगिया में आई,
देवों की देवी “ऋआ” ने ली जो छोटी अंगडाई,
बरखा की रुनझुन ने धरती को साड़ी पहनाई
थी प्रतीक्षा सबको, तब जाकर ये सौगात मिली
उतरे चेहरों पर, सांझ की सी लालिमा खिली
आशाओं के उड़े कबूतर, शहनाईओं की आवाजें
आशीर्वादों के बादल संग बधाइयां भी ढेर मिली
अब सपने हैं सुन्दर, सुन्दर “ऋआ” तुम्हारा रूप
भोली मुस्कानों की आस,दुल्हन सी बनी सरुप
भाई के हाथों की राखी,जननी का नया सृजन
पिता की प्यारी बिटिया जैसे खिली बसंती धूप
16 जुलाई 2019
पांच बसंत कर पार रिया,
देेेख रही सपने हज़ार,
बरसे मेरेे आशीष उसपर
हो उसकी बगिया गुलज़ार