Friday, June 17, 2011

विरह की आग

बरखा आई आज अकेली, भूल गयी क्यों साजन लाना 
चमक चमक कर बिजली देखो,मार रही मुझको ताना 

साजन क्यों परदेस गए तुम,बरखा आज इधर आई
लगी आते ही मुझे जलाने, कैसी अगन ये साथ लाई

पूछ रहा मन बरखा से, साजन ने क्या पैगाम दिया है
रोते रोते बरखा बोली,  उसने आंसू थाम  लिया  है 

कैसे कह दूं तनहा हूँ मैं , तेरी याद चली आयी 
मेरे सूने से नयनो में , बरखा आज भली आई

बह रही क्यों तेज हवाएं,  संकट कोई वहाँ क्या आया 
पाती दे  इतना तो कह दो, तुम संग मेरी प्रेम की छाया 

कहती दुनिया जिसे अकेला, आज उसी मन लगा  है मेला 
भीड़ बनी हैं तेरी यादें ,  बिक रहा हूँ मैं बिन  मोला 

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