Sunday, July 3, 2011

बैंक-नोकरी


तेरी दुनिया में आकर
जाने कहाँ खो गया हूँ
नियमों उसूलों की निद्रा
में, मैं जैसे सो गया हूँ

तेरे तनावों की तिकडम ने, 
छीन लिया मेरा सहारा
गीतों भरी सुनहली शामें
कहानी किस्सों वाला चौबारा

अब नहीं सुन पाता मन
पंछी की कोमल कलरव
जाने बसंत कब आता है
कब फूटती कोंपले नवनव

सूरज ज्वाला लेकर आता
नहीं आसां नियमों का पालना
रात चाँदनी में यों लगता
आदेशों की हुई अवहेलना

अब पंखो की गरम हवा
माथे पर तिर आता पसीना
कठिन कसरतें हैं ये सारी
फिर भी अच्छा लगता जीना

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