Thursday, July 21, 2011

अबीर-जन्म दिन २१ जुलाई २०११

अगस्त २०१० उदयपुर

      अबीर खड़ा लन्दन में      
फैलाये दोउ हाथ
दादा जल्दी आइयो
ले दादी को साथ

सितम्बर २०१० लन्दन

अबीर पड़ा चैन से
दादा की तोंद पर
पापा सताने आ गए
किसने पता बता दिया

मुहँ बनाकर दादी ने
पकडे अपने दो कान 
दादा देखते रह गए
मोहक अबीर मुस्कान

अबीर लाडला मम्मी का
बना पापा का सरताज
दादा दादी करते हैं 
नटखट अदाओं पर नाज़

नवंबर २०१० उदयपुर
अबीर आया  लन्दन से
काट तीन महीने वनवास
घरभर  टेर रहा रास्ते
सबको मिलने की आस

बुआ ने काट लिए मुह भर
अबीर के सुकोमल से गाल
नटखट  मुस्कराता  ही रहा
नहीं गली किसी की दाल

सारा घर ख़ुशी मना रहा क़ि
अबीर ने आते ही ताई लादी
पापा के सर पे चढ़के तब 
नाचा अबीर ताऊ की शादी 

सुन अबीर की मोहक किलकारियां 
दादा दादी का उर भर आता  
उस को सुन्दर  वस्त्र पहिनाकर 
माँ का दिल उछल उछल जाता  



२२.०२.२०११
खुद पैरों पर खड़ा होने को
मचल गया आज बाल अबीर ,
ममता भी ये देख ख़ुशी से
हुई उद्वेलित , और अधीर 

जल्दी जल्दी चलना सीखे
जल्द बड़ा हो जाये अबीर
पापा खेल खिलौने लाकर 
जाने क्या क्या करें तदबीर

पोते ने समझाया आकर
बूढ़े  दादा को ये राज 
क्यों कहते हैं  मूल से 
ज्यादा प्यारा होता ब्याज

2. दादी का लाडला 

प्यारी सोनल ने दिया हमें एक सुन्दर उपहार
सलोना, नटखट आखों वाला अबीर सुकुमार
दिवाली के दीपक सा , होली का अबीर गुलाल
पाकर जिसे दादा दादी ,मन ही मन हुए निहाल

चूमा करती बार बार , माँ उसके उन्नत भाल
और लुटाती ममता अपनी अबीर पर बेशुमार 
रात जागती, दिन न थकती ,ना कोई शिकायत,
इठला इठला कर वो सजाती अपना राजकुमार 

मन मुदित लाख बलाएँ,   दादी लेती बार बार
कहती माँ से जल्दी कर , तू इसकी नज़र उतार
बहुत दूर लन्दन में बढ़ता, अबीर कितना सुंदर
उस तक पहुंचना भी मुश्किल , सात समुन्द्र पार

स्काइप पर देख देख उसकी बाल सुलभ लीलाएं 
भरने अंक तरसती बाहें, पर कोशिशें सारी बेकार

अबीर लगता बहुत ही प्यारा, इसपे सोना चांदी वारा
लिखने लगी  कविता दादी भी , पा  ये प्यारा उपहार

3.  अबीर
जून- जुलाई २०११
स्वर्गिक सुख से बढकर,
तेरी नटखट अठखेलियां
पंचम राग सा सुख देती,
अनगढ़ मीठी तेरी बोलियां

बाँहों में तुझे भरकर लगता
फूलों का मुख चूम रहा हूँ
तेरी गुनगुन की धुन सुनकर
कोयल संग जैसे झूम रहा हूँ

जब जब नृत्य तू करता है
तबतब नाच उठता मनमोर
तेरे जागे बिन तो  लगता
अब तक सो रही है भोर

ठुमकठुमक जब चलता है तू
माँ निहारती,  ले ले बलाएँ 
दादी झूमती पुलकित होकर,
खड़े रहते सब फैलाकर बाहें.

पापा हवा में तुझे उछालते
तब रुक जाती साँसे दादा की
पर देख सलोनी तेरी मुस्कानें
आश लगाते सब ज्यादा की

बार बार चूमती तेरा भाल,और
दादी सिखलाती हाथों के करतब
बच्चों सी किलकारी सब भरते,
छोटे से हाथों से तू करता जब

मैया खाना ले पीछे दौड़े,पर 
मुहं बना बच निकल जाये,
खूब खिजाये कृष्ण कन्हैया
फिर खाकर एहसान जताए

तू सोता दादा के काँधे चढ
जय जगदीश की आरती सुन
निंदिया  दौडी दौडी आती
मीठे सपनों की धुन सुन


निर्मल नीर सा तेरा बचपन
तत्पर छूने को नील गगन
इतनी ऊँची छलांग लगा,कि
गर्वित हो मेघों का भी मन

इन्द्रधनुष की मालाएं लेकर
सौ सौ खड़ी मिलें अप्सराएँ
सुंदर सलोने तेरे चेहरे से
पूरी हों सबकी अभिलाषाएं




                                   कृ. प. उ.
                                                                                                                            (नीचे ओल्डर पोस्ट पर क्लिक) 

1 comment:

  1. who composed it../beautiful n touching..more so coz my son is also "Abir"

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