Saturday, July 23, 2011

सर्दी


शीत से कांपते गले की     
घरघराती आवाज से
मुझे सहानुभूति है
चिथड़ों में लिपटी देह के आगे 
जलती आग के सुख की
मुझे खूब अनुभूति है :
मुझे उधेड़ जाते हैं 
किटकिटाते दांत
और नाक से बहता पानी
कांपती उँगलियों से
फटे वस्त्र को देह से
चिपका कर फाड़ने वाले आसामी
गर्म वस्त्र पहन कर
मुझे शीत का भय नहीं है
पर शीत की ऐसी कुटिलता
मेरे मन को सह्य नहीं है .
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