मन में उठते हैं भाव कई
उभरते हैं घाव कई , ज्यों
सागर की उतुंग लहरों पर
तैरती हों टूटी नाव कई
हर नाव पर नाविक होता
उसे दिशा मिल ही जाती
गर गगन पर चाँद चमकता
तो निशा खिल ही जाती
पर जिसे न मिले सहारा
उस पथिक के ठहराव कई
जो भूख से व्याकुल हो
उसे मिलते हैं सुझाव कई
जिस पर कोई प्रतिबंध नहीं
वहाँ बनते हैं घेराव कई
पग उठते जहाँ जाने को
वहाँ हो जाते अलगाव कई
कृ.प.उ.
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