मेरे आँगन फूल खिला
गलियारे ऋतु बसंत आयी
हरी भरी नदिया लहरायी
आगे दिवाली की जगमग
इन्द्रधनुष पर चढ़कर आई
ऊपर अटका चाँद भावों का
बादलों की आँख मिचौनी
आजू बाजू स्वर्गिक धूप में
पिघलते जाड़ों का मन बहला
मेरे आँगन फूल खिला
खिडकी पर आ बैठी कोयल
रोशनदान से गगन झांकता
सकुचाती कुछ शर्माती
मरघट सी प्रतीक्षा थी अब
उनका पहला खत मिला
मेरे आँगन फूल खिला
कृ.प.उ.
गलियारे ऋतु बसंत आयी
हरी भरी नदिया लहरायी
आगे दिवाली की जगमग
इन्द्रधनुष पर चढ़कर आई
ऊपर अटका चाँद भावों का
बादलों की आँख मिचौनी
आजू बाजू स्वर्गिक धूप में
पिघलते जाड़ों का मन बहला
मेरे आँगन फूल खिला
खिडकी पर आ बैठी कोयल
रोशनदान से गगन झांकता
आशाएं खड़ी हुई देहरी पर
सारा जग चुपचाप निहारता
दौडी दौडी आई सुंदरी सकुचाती कुछ शर्माती
मरघट सी प्रतीक्षा थी अब
उनका पहला खत मिला
मेरे आँगन फूल खिला
कृ.प.उ.
(नीचे ओल्डर पोस्ट पर क्लिक)
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