Thursday, October 6, 2011

स्मृतियाँ



स्मृतियाँ उन क्षणोँ की
सिमट आई थी तुम
जब बाँहों में मेरे,
भावों कि चंचलता में
बंध गए थे
सहमे सहमे
क्षणों के घेरे.

२.
प्रेम गीत 
एक गीत,  जो तिर  सके तेरे सूखे अधरों पर

जीवन गुजार  दूंगा , प्रियतम, मैं उसे बनाने मे
वो ज्योत जो रहे प्रज्वलित, तेरे उदास अंधेरों में
तिल तिल बारूँगा तनमन,  मैं उसे जलाने में

३.

निराशाएं 

गिर गया
फिसलकर हाथ से
कांच का गिलास
और खंडित हो गया
उठाकर जोड़ना चाहा
पर जुड़ा नहीं
उंगली से खून बह गया .

पतंग उमंग से खरीदी
आकाश में कुलांचे भरने लगी
पर तभी डोरा टूट गया
दौड कर चाहा पकड़ लूं पर 
ठोकर खायी व  गिर गया 
डोरे से हाथ कट गया .

टूटती आशाएं
बहुत जोड़नी चाही
पर जुडी नहीं
निराशाएं बहने लगी.
४. 
दरार
नहीं होती
भूकंप की घरघराहट ,
खींच जाती है
बिना आहट
संबंधों में एक दरार . 


                                                       कृ.प. उ.

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