मैं चला ले उर में अपने
पावन प्रतिमा प्रीतम की
जग क्या मुझको रोक सकेगा ?
साथ दिया जिनका जग ने
क्या वो ना भटके हैं मग में
था जिनमे ठुकराने का बल
क्यों वो चढ बैठ हैं दृग में
कर उपेक्षा झूठे जग की
चाह रखी है संगम की
जग क्या मुझको रोक सकेगा ?
उठ गया है मेरा ये पग
करने जीवन ज्योति जगमग
इन्द्रासन भी डोल उठेगा
जब रखूंगा दृढ़ता से पग
पिघला कर कैलाशगिरी को
मैं उतरा हूँ सुंदरबन में
पग मेरा जग रोग सकेगा ?
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