Saturday, December 10, 2011

प्रशासन


शाशन का कैसा ये रूप ?

एक ओर बरस रहा अमृत,
दूजी ओर बेबसी में होता व्रत
भूख कर रही तांडव नृत्य,
ये मानव बिलखता सा मृत,


इधर रेशमी गद्दे हैं,आवाज़ बुलुन्द,
उधर सांसों में आवाज़ घुटी सी,
इधर तो चलती मोटर कारें,
जीवन नैया उधर टूटी सी.

नोकर चाकर उनके पीछे ,
हम खुद नोकर बनते हैं,
कोई नहीं हमारी सुनता ,
हमीं उनके भाषण सुनते हैं.

वहां जलते हैं बल्ब सोने के,
हमें नसीब ये अँधेरा कूप,
कहे सुभाष समझ न पाऊं
शाशन का कैसा ये रूप. ?


                          कृ.प.उ.
                          (नीचे ओल्डर पोस्ट पर क्लिक}

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