Tuesday, June 21, 2011

मिलन



तुम उषा की हो लालिमा ,मैं अमावस  की कालिमा
बोलो मिलन कहाँ पर होगा?


तुम हंसते प्राची प्रांगण में , मैं रोता हर इक क्षण में
तुम चढ़ते छूने गगन को, मैं टूटता सूखे त्रण में


मेरा ह्रदय गरीब झोंपडी, प्यार तुम्हारा महलों में
बोलो मिलन कहाँ पर होगा?


तुम सोते मखमली शय्या पर,मैं  सजाता सेज शूलों की
तुम रखते कदम फूंक फूंक, मैं ढोता गठरी भूलों की
बोलो मिलन कहाँ पर होगा?
....................................
तुम दिवाली बन  जाओ,  मैं हूँ यदि अमावसी  कालिमा
मैं हूँ यदि धरा रेतीली, तो  तुम बनो साँझ की लालिमा 


स्वर्ग सा सुख मेरी झोंपडी, स्वर्गिक शय्या  मेरी बाहें
कदम तुम्हारे गर चल पड़े, आसां होंगी मंजिल की राहें 
प्रिये मिलन वहीँ पर होगा ...


  

1 comment:

  1. Great poetry...I am not much into Hindi poetry, but this one is very nice...reminded me of the great Manna Dey-Lata Mangeshkar Duet..."tum gagan ke chandrama ho, main dhara ki dhool hoon"

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