Sunday, June 26, 2011

चुप्पी

मैं निराश तो नहीं हुआ हूँ , आशाओं को तोल रहा हूँ 
गागर में भरकर आशाएं , निराशाएं   ढोल   रहा  हूँ 


सपने देखे हैं जीवन के,  मौत से भी लड़ते लड़ते 
बसंत सा खिलाया जीवन, पतझर सा झड़ते झड़ते


अंधेरों में भय नहीं करता,आशा हरदम सवेरे की 
यथार्थ के धरातल पर , कल्पना इक चितेरे की


पाषाणों से लड़ लूँगा ,  ह्रदय उनका टटोल रहा हूँ
जीवन के भावी क्षण को,आशनिराश से तोल रहा हूँ 


मैं उदास नहीं हुआ हूँ,भविष्य के बंधन खोल रहा हूँ
चुप्पी तो साधी  है मैंने , पर गीतों में बोल रहा हूँ
  


                                                                              कृ.प.उ.
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