आज शाम ने जब
लाल रंग दिया आकाश को
और धरती के माथे पर
टीका बनकर सूरज उभरा
तो लगा,
मेरे हाथ तुम्हारा चेहरा
रंग रहे हैं
और चहरे पर चमक रहा है
सूरज सा टीका .
उड़ते खगों के झुण्ड में
ढेरों अरमान पल रहे हैं
बेहया छोरों से
वृक्षों के झुण्ड
हम पर खिल (जल) रहे हैं
डूबते दिन में
उतरती रात, जैसे
उतरती रात, जैसे
तुमने छिपा लिया है चेहरा
और खम्बे पर टंगा बल्ब
मेरा मन लुटेरा .
ऐसा है आलम
परदेसी होली का
जलती है सुधबुध
ज्यों जलती है होलिका .
कृ.प.उ.
कृ.प.उ.
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