Saturday, July 9, 2011

प्रवासी होलिका

आज शाम ने जब
लाल रंग दिया आकाश को
और धरती के माथे पर
टीका बनकर सूरज उभरा
तो लगा,
मेरे हाथ तुम्हारा चेहरा
रंग रहे हैं
और चहरे पर चमक रहा है
सूरज सा टीका .

उड़ते खगों के झुण्ड में
ढेरों अरमान पल रहे हैं
बेहया छोरों से
वृक्षों के झुण्ड
हम पर खिल (जल) रहे हैं

डूबते दिन में
उतरती रात, जैसे
तुमने छिपा लिया है चेहरा
और खम्बे पर टंगा बल्ब
मेरा मन लुटेरा .

     ऐसा है आलम
     परदेसी होली का
     जलती है सुधबुध
     ज्यों जलती है होलिका .


                               कृ.प.उ.
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