Friday, July 1, 2011

पीड़ा से प्रणय


हर दोष तुम्हे देने से पहले ,
निर्दोष तुम्हे मैं कह लेता हूँ,
हर अलगाव देने से पहले ,
सीने से तुम्हे लगा लेता हूँ ,
तुम मानो या न मानो .

जीवन में तुम तुम हो मैं मैं हूँ,
मुझमे तुम, तुम में मैं नहीं हूँ ,
इसी धरातल पर चलकर
प्रेम तुम्हारा पा लेता हूँ
तुम जानो या न जानो .

यों तो  हम दोनों एक हैं पर,
एक की परिभाषा एक नहीं है
मन कब स्पष्ट ही हो पाता है
तो भी व्यर्थ सभी कह देता हूँ,
तुम मानो या न मानो .

यों तो हम दोनों के सम्बन्ध
सदा गंगा से पवित्र रहे हैं ,
फिर भी कटुता हो जाती है तो
थोड़े से आंसू ढो लेता हूँ ,
तुम मानो या न मानो .

मैंने तुमसे प्रीत चाही थी
तुमने मुझको घाव दिए ,                       
पर इससे मन को भाव मिले,
यही सोच दुआएं दे लेता हूँ
तुम जानो या न जानो .

ओ दोष मुझे देने वालों
इतना तो दोषी नहीं हूँ लेकिन
जब तुम कहते हो मुझसे मैं ,
अपना दोष भी मान लेता हूँ,
तुम शायद मुझे नहीं पहचानो .

हर किसी पर दोष मढने वालों
तुम रंगमंच पर उभर आते हो,
हर दोषारोपण करने वालों को ,
पर मैं दोषी कह देता हूँ ,
तुम जानो या न जानो .

पीड़ा मेरी अर्धांगिनी है,
मेरा प्रणय सदा अमर है
हर पीड़ा देने वाले को मैं
अपना साथी कह लेता हूँ
तुम मानो या न मानो .


                         कृ.प.उ.
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