तुमसे मिलन नहीं आसान
कृ. प. उ.
फिर भी मन है आशावान
पर्वत पत्थर से जा टकराए
पुरुषार्थ की यही पहचान
जो डरे हैं, डरे- डिगे हैं
कब पूजता उन्हें जहान
जो कर गुजरे अपने मन की
सभी कहते हैं उन्हें महान
वह सदैव लक्ष्य पर पहुंचा
चलाया जो हमने तीर कमान
जब जब प्रत्यंचा चढाई मैंने
तब तब मधुर गूंजे थे गान
तेरे मेरे प्रेम का , विश्व,
आज क्यों करता व्यापार,
न तुम हो,न मैं सहमत,
किसने उसे दिया अधिकार.
जो भी मेरे साथ रहा
वो है इसीलिए हैरान
जो कहता वही करता,
वही करता,जो ली ठान
कृ. प. उ.
(नीचे ओल्डर पोस्ट पर क्लिक)
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