न डरो अब प्रीतम प्रीति से ,
प्रीति की निर्णित नीति से,
समाज की भ्रामक भीति से
बंधो की कोरी कीर्ति से ;
नियंत्रित कला कलुषित होती है
स्वार्थमयी दुआ दूषित होती है
तुम न डरो रोपित रीति से
जीवन है पोषित ही प्रीति से ;
न डरो अब प्रीतम पीडाओं से
प्रीति की कलोल क्रीड़ाओं से
भावों के चुभते चित्रण से
प्रेम के रोचक ऋण से ;
वरण करो जीवन ज्योति का
प्रिये ! प्रेम को चुनौती का .
कृ.प. उ.
(नीचे ओल्डर पोस्ट पर क्लिक )
I cherished the use of alankars here, nice one
ReplyDeleteथैंक्स,
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