Saturday, December 10, 2011

नुकते


इज्ज़त
इज्ज़त
इज्ज़त नहीं हुई ,
कोई हूर कि परी,
बेचती फिरे
फटी हुई दरी
    जिसने खरीदी
    पैबंद लगाया ,
    बेचकर भी
    हर कोई पछताया .
आग-पानी
आग ने
ठंडी होकर
अस्तित्व खो दिया ;
पानी
ठण्ड से
बर्फ हो गया,

इसी का है
दोनों में बैर
अपनी अपनी
किस्मत का फेर

कवि 
इन्द्र
इसबार
सावन सूखा रखकर
हम कवियों पर तूने
रखी बड़ी मेहरबानी
न उनकी याद आई
न भूखे मरे
बेवफाई के बदले
न मिला मरने को
चुल्लूभर पानी.
२.
न मिला बाज़ार में राशन
या मटके में पानी
भूखे भजन किया गोपाला
राशन पर पड़ा रहा ताला
श्रीमतीजी रही चुपचाप
अवसर मिला हमें
कागज करने को काला.

प्रेम आग्रह  
डूब जाने दो
प्रेम के सागर में,
बीन लेने दो
खुशियों के मोती ,
समेट लेने दो
तम सामाजिक बंधनों का ,
प्रज्वलित कर लेने दो
प्रेम की ज्योति .

गलबाहें 
स्मृतियाँ उन क्षणोँ की
सिमट आई थी तुम
जब बाँहों में मेरे,
भावों कि चंचलता में
बंध गए थे
सहमे सहमे
क्षणों के घेरे.


                  कृ.प.उ.
                  (नीचे ओल्डर पोस्ट पर क्लिक)

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