फूल पांखुरी सी मुस्काती, कमल खिला जैसे लहरों पर
तनभी कोमल,मन भी कोमल, सबको बना दिया कोमल
कोयल सी किलकारी मारती,अदाएं भी कंचन सी कोमल
सम्मोहन भरी मादक मुस्कान, बना देती सबको चंचल
गुलाब पंखुरी से कोमल गाल,अबीर गुलाबी होते हर पल
बस रिझाना व मुस्काना, करना अठखेलियाँ सबके संग
शीतल झोंको से खिली सी ‘अवनि’, हरित बना मरुथल
चैत्र मास की तपती धूप में, छाँव बनी उसकी हलचल
ढलती उम्र की झुर्रियों पर,माखन सी चमक चली आयी
जगा गयी बड़ी आशाएं, छोटी सी जो ये आशा लायी
नयनो से बुलावा देती , दादा आ गोद उठालो मुझको
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