Sunday, December 26, 2021

                                             

प्रतीक्षा

सबके घर कागा बोला है

मेरे ही घर क्यों न आया

प्रियतम क्या मुझ तक आने का

तुम्हे अभी तक ख्याल न आया

(सन्देश आने का )

अंदर बाहर

बाहर अंदर

लग रहे घर में चक्कर पे चक्कर

कभी पुकार तुम्हारे नाम की

कभी आंसू आँखों में मथकर

बेसब्री बैचेनी से

प्रतीक्षा कर रहा तुम्हारी

 

तुम्हे गए दिन चार बीते हैं

लगता वर्षों बीत गए हैं

घर का चप्पा चप्पा उदास है

जब से मेरे मन मीत गए हैं

 

बुद्धि को बहुत पाठ पढाये

तुम्हारी ही खुशियों की खातिर

पर मन को कैसे समझाऊँ

जो आ जाये जिद पर फिर फिर

.........तुम जल्दी आ जाओ न .

 

आते आते कहाँ रुक गए तुम

धड़कने मेरी बढ़ गयी हैं

आशाओं का कागा देखने

आँखे मुंडेर पर चढ गई हैं

 

न अब तुम कहीं रुको ,

आओ तुम जल्दी से आओ

सोने को है आशाएं थककर

पूर्व शयन के लोरी गाओ

 

आँख घड़ी पर लगी हुई है

आशाएं ढूंढ रही कोव्वे को

प्रतीक्षा यों कर रहा तुम्हारी

जी करता है अब रोने को

 

आज गले तक भर आया हूँ

धीरज अपना हार गया हूँ

कैसे तुम्हे बुलाऊँ, दूर रहूँ कैसे

सारे भूल व्यवहार गया हूँ

प्रीतम आज आ जाना......

 

चलो यों ही रहने दो, तुम

जीते ,मेरी ही धीरता हारी, 

कितनी बेसब्री बैचेनी से

प्रतीक्षा कर रहा तुम्हारी .

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